________ में, विदेशी विनिमय दर बाजार शक्तियों द्वारा निर्धारित की जाती है और केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा बाजार में भागीदारी के माध्यम से विनिमय दर को प्रभावित करता है।

UPSC CDS I Result declared on 21st November 2022. This is the final result for the CDS I examination 2022. Earlier, the Written Exam Result was declared for CDS II. The exam was conducted on 4th September 2022. The candidates who are qualified in the written test are eligible to attend the Interview. A total number of 6658 candidates were shortlisted for the same. The Interview Schedule is going to be released. This year a total number of 339 vacancies have been released for the UPSC CDS Recruitment 2022.

विदेशी विनिमय दर (Foreign Exchange Rate)

अर्थात विनिमय दर एक ऐसी कीमत है जो दूसरी करेंसी में प्रकट की जाती है। यह आम प्रचलित है कि विदेशी करेंसी की एक विदेशी विनिमय दरों के प्रकार कितने हैं इकाई को घरेलू करंसी में प्रकट किया जा सकता है। इस दर को दो प्रकार से प्रकट किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर यदि एक अमेरिकन डॉलर को भारत के ₹ 73.3152 में बदला जा सकता है तो इस दर को निम्न ढंग से लिखा जा सकता है ।

$1 = ₹ 73.3152 या
₹1 = $ 0.01336397

(नोट : यह मूल्य प्रतिदिन बदलता रहता है। यह मूल्य 15 अक्टूबर 2020 का विदेशी विनिमय दरों के प्रकार कितने हैं है।)

इसका अर्थ यह है कि जितनी वस्तुएं अमेरिका में $1 द्वारा खरीदी जा सकती है भारत में उतनी ही वस्तुएं लगभग ₹ 73 में खरीदी जा सकती हैं। दूसरे शब्दों में विनिमय दर घरेलू करेंसी की विदेशी क्रय शक्ति को प्रकट करती है।

विनिमय दर को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं-

  1. कीमतों में परिवर्तन- दो देशों में किसी एक देश में सापेक्षिक दृष्टि से कीमत के परिवर्तन के परिणामस्वरूप विनिमय दर परिवर्तित हो जाती है। उदाहरणार्थ, माना भारत में कीमत स्तर बढ़ जाता है, जबकि इंग्लैण्ड में कीमत स्तर में कोई परिवर्तन नहीं होता है। भारतवासियों को इंग्लैण्ड की वस्तुएँ सस्ती पड़ने लगेंगी और वह वहाँ से बड़ी मात्रा में आयात करने लगेंगे। अतः पौण्ड की माँग बढ़ेगी। पौण्ड का मूल्य रुपयों में बढ़ जायेगा।
  2. आयात एवं निर्यात में परिवर्तन- आयात एवं निर्यात में परिवर्तन के परिणामस्वरूप विदेशी विनिमय की माँग एवं पूर्ति में परिवर्तन हो जाता है। यदि देश के निर्यात उसके आयातों से अधिक हैं तो देश की मुद्रा की माँग विदेशी विनिमय दरों के प्रकार कितने हैं बढ़ेगी और विदेशी विनिमय दर देश के पक्ष में परिवर्तित होगी। इसके विपरीत, यदि देश के आयात, निर्यात से अधिक हैं तो विदेशी मुद्रा की माँग बढ़ेगी तथा विनिमय दर देश के विपक्ष में हो जायेगी।
  3. पूँजी का आवागमन- जिस देश में विदेशों से पूँजी आती है उस देश की मुद्रा की माँग बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप विदेशी विनिमय दरों के प्रकार कितने हैं विनिमय दर उस देश के पक्ष में हो जाती है। इसके विपरीत जब पूँजी देश से विदेश को जाती है तो विदेशी विनिमय की माँग बढ़ जाती है और विनिमय दर विपक्ष में हो जाती है।
  4. बैंकिंग सम्बन्धी प्रभाव- बैंक अपनी क्रियाओं के द्वारा भी विनिमय दर को प्रभावित किया करते हैं। यदि व्यापारिक बैंक विदेशी बैंक पर बड़ी मात्रा में बैंकर्स ड्राफ्ट तथा अन्य प्रकार के साख पत्र जारी करता है तो इससे विदेशी विनिमय की माँग बढ़ जाती है और विनिमय दर देश के विपक्ष में हो जाती है। इसके विपरीत जब विदेशी बैंक देश के बैंकों के ऊपर साख पत्र जारी करते हैं तो देशी मुद्रा की माँग बढ़ जाती है और विनिमय दर देश के पक्ष में हो जाती है।

प्रश्न : अनुकूल विदेशी विनिमय दर तथा प्रतिकूल विदेशी विनिमय दर से क्या अभिप्राय है? यह स्थिति कब आती विदेशी विनिमय दरों के प्रकार कितने हैं है?

उत्तर : अर्थशास्त्र में यह जान लेना भी बहुत आवश्यक है कि किस समय विदेशी विनिमय दर अर्थव्यवस्था के अनुकूल तथा प्रतिकूल होती है।

A) अनुकूल विदेशी विनिमय दर : विदेशी विनिमय दर उस समय अर्थव्यवस्था के अनुकूल समझी जाती है जब एक विदेशी करेंसी की इकाई के बदले विदेशी विनिमय दरों के प्रकार कितने हैं घरेलू करेंसी की इकाइयां कम देनी पड़े। इसे “घरेलू करंसी का अतिमूल्यन” भी कहा जाता है। ऐसा केवल निम्न दशाओं में हो सकता है :

1) देश के निर्यातों में वृद्धि से विदेशी करेंसी की पूर्ति में वृद्धि।

2) देश में विदेशी निवेश की वृद्धि से विदेशी करेंसी की पूर्ति में वृद्धि।

3) देश में विदेशी पर्यटकों तथा विद्यार्थियों के आने से विदेशी करंसी का आगमन।

ऐसी दशा में घरेलू अर्थव्यवस्था का विस्तार होता है तथा देश के उत्पादन तथा रोजगार में वृद्धि होती है।

B) प्रतिकूल विदेशी विनिमय दर : विदेशी विनिमय दर उस समय प्रतिकूल होती है जब विदेशी करेंसी की एक इकाई के बदले घरेलू करंसी की अधिक इकाइयां देनी पड़े। इसे “घरेलू करंसी का मूल्य ह्रास” भी कहा जा सकता है। इस दशा में करंसी का अवमूल्यन हो जाता है। ऐसा केवल निम्न दशाओं में होता है :

1) देश में आयतों की वृद्धि से विदेशी करेंसी की मांग।

2) घरेलू देश से विदेशों में अधिक निवेश।

3) घरेलू देश से विदेशों में विद्यार्थियों का अधिक जाना इत्यादि।

ऐसी दशा देश के आर्थिक विस्तार के लिए हानिकारक होती है तथा उत्पादन एवं रोजगार की वृद्धि में बाधा बनती है।

प्रेषित :
मनीष कपूर
प्रवक्ता अर्थशास्त्र

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