वित्त मंत्री का नजरिया

Nirmala sitaraman

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन के बयान पर उचित ही देश में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। आर्थिक मसलों पर संसद में सवाल पूछने पर उन्होंने विपक्ष की तुलना देश से बाहर बैठे दुश्मनों से की और कहा कि देश की आर्थिक तरक्की से उन्हें जलन होती है। यह सीधे तौर पर सवाल पूछने और कमियों की तरफ इशारा करने की जरूरी प्रवृत्ति को अपने समर्थक विदेशी मुद्रा में एक प्रवृत्ति क्या है जमातों के बीच देश-द्रोही ठहरा देने का नजरिया है। इसके पीछे सोच यह है कि सरकार जो कहानी बताती है, उसे जो भी उसी रूप में स्वीकार नहीं करता और उस पर बहस करना चाहता है, उसकी साख को संदिग्ध कर दिया जाए। मुमकिन है कि इस आक्रामकता के पीछे असल कारण जवाब का अभाव हो। आखिर देश की अर्थव्यवस्था के कई ऐसे पहलू हैं, जिन पर अगर सरकार खुल कर चर्चा करने को तैयार हो, उसे खुद ‘तरक्की’ की बनाई गई अपनी कहानी में कई छेद नजर आएंगे। बहरहाल, अगर वह छेद देखने को तैयार हो, तो उससे समाधान का रास्ता भी नजर आ सकता है। लेकिन वर्तमान सरकार कोई समस्या नहीं देखना चाहती। जाहिर है, वह इन मुद्दों की चर्चा सिरे से ठुकरा देना चाहती है, ताकि भूले से भी उसकी समर्थक जमातों का ध्यान उनकी तरफ ना जाने लगे।

इस कोशिश में जनता से चुन कर आए विपक्षी प्रतिनिधियों की देशभक्ति पर भी अगर अंगुली उठानी हो, तो उसे इसमें कोई हिचक नहीं होती। लेकिन इस नजरिए के कारण देश अलग-अलग नैरेटिव्स में बंटता चला गया है। देश के दूरगामी भविष्य के नजरिए यह चिंताजनक बात है। राष्ट्र की मजबूती सहमति और साझा हित के अधिकतम पहलुओं की तलाश से होती है। देशभक्त शक्तियों का कर्त्तव्य ऐसे पहलुओं को ढूंढना और उन्हें स्वीकार्य बनाना होता है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि वर्तमान सरकार आर्थिक मुद्दों पर विपक्षी विश्लेषण को नहीं सुनना चाहती। अगर सचमुच वह एक खास धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान आधारित राष्ट्र निर्माण में जुटी होती, तो उसे इन मुद्दों की अवश्य चिंता होती। इसलिए कोई राष्ट्रवाद संबंधित पहचान से जुड़े लोगों की खुशहाली सुनिश्चित नहीं करता, तो वह टिकाऊ नहीं हो सकता। वह महज कुछ समूहों और वर्गों की सत्ता और वर्चस्व को, जब तक संभव हो, टिकाए रहने का जरिया ही हो सकता है।

देश में वित्तीय उत्पादों के प्रति बढ़ रहा है आकर्षण: रिपोर्ट

मुंबई, 14 दिसंबर (भाषा) देश में सोने और जमीन-जायदाद में निवेश के बजाय अब म्यूचुअल फंड जैसे वित्तीय संस्थानों में बचत की प्रवृत्ति बढ़ी है और इसके साथ प्रबंधन अधीन परिसंपत्तियों के अगले पांच साल में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के करीब तीन-चौथाई यानी 74 प्रतिशत तक पहुंच जाने का अनुमान है।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की एक इकाई ने बुधवार को अपनी रिपोर्ट में कहा कि निरपेक्ष रूप से कोष प्रबंधन से जुड़े उद्योग के प्रबंधन अधीन परिसंपत्तियां 2026-27 तक 315 लाख करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है जो 2021-22 में 135 लाख करोड़ रुपये थीं।

लंबे समय से नीति निर्माता यह चाहते रहे हैं कि लोग सोने और जमीन, मकान जैसी भौतिक संपत्तियों में निवेश के बजाय म्यूचुअल फंड, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड, इक्विटी शेयर जैसे वित्तीय उत्पादों में निवेश करे।

रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ साल से अतिरिक्त नकदी के साथ बॉन्ड और शेयर बाजारों में तेजी रही है। इससे वित्तीयकरण यानी लोगों के वित्तीय संस्थानों से जुड़ने और वित्तीय उत्पादों में निवेश को लेकर आकर्षण बढ़ा है। इसमें आगाह करते हुए यह भी कहा गया है कि वित्तीय बाजारों या नकदी के स्तर पर लंबे समय तक रहने वाली बाधाएं निवेशकों के अनुभव को प्रभावित कर सकती हैं।

क्रिसिल मार्केट इंटेलिजेंस एंड एनालिटिक्स के प्रमुख आशीष वोरा ने कहा, ‘‘पिछले पांच वित्त वर्षों में निवेश परिदृश्य में काफी कुछ हुआ है। हालांकि, क्षेत्र की क्षमता और विकसित देशों में ऐसी संपत्तियों में वृद्धि को देखते हुए कहा जा सकता है, अभी इसे लंबा सफर तय करना है।’’
रिपोर्ट में कहा गया है कि विदेशी मुद्रा में एक प्रवृत्ति क्या है वित्तीय समावेशन, डिजिटलीकरण, मध्यम वर्ग की खर्च योग्य आय में वृद्धि की प्रवृत्ति और इन उत्पादों पर सरकारी प्रोत्साहनों से क्षेत्र को बढ़ावा मिला है।

कंपनी के वरिष्ठ निदेशक जीजू विद्याधरन ने कहा कि इन उत्पादों की दूरदराज के क्षेत्रों तक पैठ बढ़ाने और वित्तीय जागरूकता बढ़ाने के लिये वितरण के मोर्चे पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। साथ ही इस खंड को पर्याप्त रूप से प्रोत्साहित करना होगा।
उन्होंने कहा कि उद्योग को अपने उत्पादों के लिए केवल जागरूकता का प्रसार ही नहीं करना चाहिए, बल्कि लोगों को उनके बारे में शिक्षित करना चाहिए।

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जरुरी जानकारी | शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया चार पैसे टूटकर 82.64 पर आया

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on Information at LatestLY हिन्दी. विदेशी बाजारों में अमेरिकी डॉलर की मजबूती और निवेशकों की जोखिम से बचने की प्रवृत्ति के बीच रुपया बुधवार को शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले चार पैसे की गिरावट के साथ 82.64 के स्तर पर आ गया।

जरुरी जानकारी | शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया चार पैसे टूटकर 82.64 पर आया

मुंबई, 14 दिसंबर विदेशी बाजारों में अमेरिकी डॉलर की मजबूती और निवेशकों की जोखिम से बचने की प्रवृत्ति के बीच रुपया बुधवार को शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले चार पैसे की गिरावट के साथ 82.64 के स्तर पर आ गया।

विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने कहा कि घरेलू शेयर बाजारों में तेजी से घरेलू मुद्रा को मजबूती मिली।

अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनियम बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपया 82.60 पर खुला, फिर और गिरावट के साथ 82.64 के स्तर पर आ गया जो पिछले बंद भाव के मुकाबले चार पैसे की गिरावट को दर्शाता है।

शुरुआती सौदों में रुपया 82.60-82.65 के सीमित दायरे में कारोबार कर रहा था।

रुपया मंगलवार को डॉलर के मुकाबले 9 पैसे टूटकर 82.60 पर बंद हुआ था।

इसबीच छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.11 प्रतिशत की बढ़त के साथ 104.09 पर आ गया।

वैश्विक तेल सूचकांक ब्रेंट क्रूड वायदा 0.33 फीसदी की गिरावट के साथ 80.41 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर आ गया।

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)

वित्त मंत्री का नजरिया

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन के बयान पर उचित ही देश में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। आर्थिक मसलों पर संसद में सवाल पूछने पर उन्होंने विपक्ष की तुलना देश से बाहर बैठे दुश्मनों से की और कहा कि देश की आर्थिक तरक्की से उन्हें जलन होती है। यह सीधे तौर पर सवाल पूछने और कमियों की तरफ इशारा करने की जरूरी प्रवृत्ति को अपने समर्थक जमातों के बीच देश-द्रोही ठहरा देने का नजरिया है। इसके पीछे सोच यह है कि सरकार जो कहानी बताती है, उसे जो भी उसी रूप में स्वीकार नहीं करता और उस पर बहस करना चाहता है, उसकी साख को संदिग्ध कर दिया जाए। मुमकिन है कि इस आक्रामकता के पीछे असल कारण जवाब का अभाव हो। आखिर देश की अर्थव्यवस्था के कई ऐसे पहलू हैं, जिन पर अगर सरकार खुल कर चर्चा करने को तैयार हो, उसे खुद ‘तरक्की’ की बनाई गई अपनी कहानी में कई छेद नजर आएंगे। विदेशी मुद्रा में एक प्रवृत्ति क्या है बहरहाल, अगर वह छेद देखने को तैयार हो, तो उससे समाधान का रास्ता भी नजर आ सकता है। लेकिन वर्तमान सरकार कोई समस्या नहीं देखना चाहती। जाहिर है, वह इन मुद्दों की चर्चा सिरे से ठुकरा देना चाहती है, ताकि भूले से भी उसकी समर्थक जमातों का ध्यान उनकी तरफ ना जाने लगे।

इस कोशिश में जनता से चुन कर आए विपक्षी प्रतिनिधियों की देशभक्ति पर भी अगर अंगुली उठानी हो, तो उसे इसमें कोई हिचक नहीं होती। लेकिन इस नजरिए के कारण देश अलग-अलग नैरेटिव्स में बंटता चला गया है। देश के दूरगामी भविष्य के नजरिए यह चिंताजनक बात है। राष्ट्र की मजबूती सहमति और साझा हित के अधिकतम पहलुओं की तलाश से होती है। देशभक्त शक्तियों का कर्त्तव्य ऐसे पहलुओं को ढूंढना और उन्हें स्वीकार्य बनाना होता है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि वर्तमान सरकार आर्थिक मुद्दों पर विपक्षी विश्लेषण को नहीं सुनना चाहती। अगर सचमुच वह एक खास धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान आधारित राष्ट्र निर्माण में जुटी होती, तो उसे इन मुद्दों की अवश्य चिंता होती। इसलिए कोई राष्ट्रवाद संबंधित पहचान से जुड़े लोगों की खुशहाली सुनिश्चित नहीं करता, तो वह टिकाऊ नहीं हो सकता। वह महज कुछ समूहों और वर्गों की सत्ता और वर्चस्व को, जब तक संभव हो, टिकाए रहने का जरिया ही हो सकता है।

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